Monday, 19 November 2012

Gazal

इश्क ने मारा नहीं तो खुद-ब -खुद मर जायेंगे !
हम तो पागल हे कभी भी ख़ुदकुशी कर जायेंगे !

जंगलो में तो जगा-ऐ-आसमा महेफुज़ हैं ,
इस शहर में गर उड़ोंगे हाथ से पर जायेंगे !

सूरत-ऐ-मजहब के बारे में भी होगी गुफ्तगू ,
क्या कहेंगे जब कभी अल्लाह के घर जायेंगे !

मैकदे में गर खुला छोड़ेंगे अपने आप को ,
ये मेरा दावा हैं की बन्दे सभी तर जायेंगे !

खंजरो से खेलने वाले ना आऐ बाग़ में ,
हे बहोत मुमकिन दीदार-ऐ-फुल से डर जायेंगे !

-इश 

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