Thursday, 22 November 2012

लिख रहा हुं


मुजसे लिया गया जो ईन्तेक़ाम लिख रहा हुं
में अपने शहर का वो क़त्ल-ए-आम लिख रहा हुं

ये ईश्क, हुस्न, नज़र, दोस्ती, अदा, वफ़ा, सब
में हूं फरेबी, लफ्ज़ भी बदनाम लिख रहा हुं

आज़ान पढ रहा हूं में मंदिर की छत के उपर
मस्जिद के सायेमे में राम नाम लिख रहा हुं

ये ईश्को ग़म फिराको वस्लसे अलग भी सोचो
लो लिख रहा हूं में नया अंजाम लिख रहा हुं

ये कौनसी ईनायते है? कौन अज़मते है?
ने'मत बरस रही है में जाम लिख रहा हुं

हां अब कहीये फूलसे की तंज़ फरमाये वो
बेनाम जो लहर थी वो में आम लिख रहा हुं

होती नहीं हज़म जो वो ही ब्रेड ज़िन्दगी है
इस पर मैं मोहब्बतका फ्रूट-जाम लिख रहा हुं

इतनी मीठास-ए-हुस्न तो कोहराम ही मचा दे
तेरी अदा के पान में किमाम लिख रहा हुं

मेरी बिमारी जान लो के जानलेवा है पर
मां डर नहीं जाए सो में झुकाम लिख रहा हुं

आवाज़ मेरे एहल-ए-नबी की चमक रही है
उसको ग़ज़ल बनाके में गुलाम लिख रहा हुं

- © तोफानी त्रिपुटी

No comments:

Post a Comment