क्या कहू मै ? अब कुछ कहा नहीं जाता.
ये जीवन ! अब मुझसे जिया नहीं जाता.
गलती थी मेरी' या तकदीर ही ख़राब थी,
रास्ता गलत था, या चाहत ही गलत थी,
बेठा हु, थक हार कर दिल में तूफां लिए,
पाना, चाहता हु चाहत, पाया नहीं जाता.
चाहत भरी बातो को, सुनता हु मै अक्षर,
मेरी चाहत कहा है' वो ढूंढता हु मै अक्षर,
कोई है? जो मुझे मेरी चाहत से मिला दे,
चाहत है क्या ? उसको जाना नहीं जाता.
जिसको भी मैंने चाहा, मुह फेरकर गया,
एक दर्द भरा लम्हा दिलमें छोड़कर गया,
किस फेरमें डाला है, दुनिया बनाने वाले,
"बादल" का बोझ अब उठाया नहीं जाता.
-----------बादल ( बाबा देसाई )
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