internet ki duniyase
Saturday, 24 November 2012
ज़िन्दगी
ज़िन्दगी हमदर्द नहीं
आतताई है,
मैंने तो हर जगह
मात खायी है ।
कहाँ तक साथ दे
कोई किसका,
रिश्तों को सुविधा ही
रास आयी है ।
हैरान हूँ,
अपनी ज़िन्दगी से मिलकर,
बहारों का मौसम है
या ख़िजा आयी है ।
सतीश चन्द्र श्रीवास्तव
No comments:
Post a Comment
Newer Post
Older Post
Home
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment