Saturday, 24 November 2012

ठीक है बेटा फिर मत आना


ठीक है बेटा
मत आना लौटकर तुम अपने घर
जहां तुम्‍हारी मूर्ख माँ की
आँखें पथरा गयी है
राह तकते-तकते
सून भी नहीं सकती
कहता हूँ बेटा आने से मना करता है
फिर भी आस लगायी
राहों को तकती है
जैसे तकती राहें तुम तक पहुंचती हों
अब कौन समझाए तुम्‍हारी माँ को
बेटे का भी अपना घर-परिवार है
परिवार में अब कहाँ है
हमारी जगह
नहीं समझ पाती है तुम्‍हारी
पुरानी ख्‍यालातों वाली माँ
सुनती नहीं है सिर्फ कहती है
नजर नहीं आते हमारे आँसू
अब कौन समझाए उसे बेटा
आँखों से टपके आँसू
नहीं भीगा सकते
तुम तक पहुंचने वाली राहों को
इस बार और शायद
आखिरी बार
लौट आओ बेटा
भेंट हो जाएगी
फिर आने की जरूरत
तुम्‍हें नहीं पड़ेगी
हम ले रहे है साथ खाने में
धीमी जहर
वक्‍त लगता है खत्‍म करने में
जहर तो है पर है धीमा
अनुमानत तुमसे यह मुलाकात
आखिरी ही हो
ठीक है बेटा
फिर मत आना !

राजीव आनंद

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