बावजूद इसके तेरा साथ निभाया मैंने
तू फटा नोट था पुरे में चलाया मैंने
उम्र भर कोई मददगार मयसर ना हुआ
अपनी पहचान का खुद बोझ उठाया मैंने
तुझसे शर्मिंदा हूँ दो वक़्त की रोटी के लिए
...ज़िन्दगी तुझको बहुत नाच नचाया मैंने
अब तो कतरे भी समझने लगे खुद को दरिया
मैं समंदर था किसी को ना बताया मैंने
पांव में बांध ली जंजीर ख़ुशी से लेकिन
ताज रखने के लिए सर ना झुकाया मैंने ...........
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