भटकता रहा मैं इस हयात में
हर पल एक खुशी की तलाश में
साधक बना विकट कामना थी मेरी
कोई दुखी न रहे अपने हयात में
चुभा कांटा निकाला था बच्चे का एक दिन
बेशुमार खुशियां आयी थी अपने हयात में
रोते एक शख्स को हंसा दिया था एक दिन
जश्न मनाया इतनी खुशियां मिली हयात में
गम खत्म बेजारों का गर कर सकूं
जीने का मकसद मिल जाए इस हयात में
राजीव आनंद
प्रोफेसर कॉलोनी, न्यू बरगंड़ा
गिरिडीह, झारखंड़ 815301
आगे पढ़ें: रचनाकार: राजीव आनंद की कविताएँ http://www.rachanakar.org/2012/12/blog-post_8987.html#ixzz2FiBnZHAb
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