चांद पर जो चढ़ गया वह भी आदमी।
भूख से जो मर गया वह भी आदमी॥
आदमी को नमन करे आदमी की भीड़,
वह कैसा आदमी जो खोज रहा नीड़ ?
गजरों के बीच में खड़ा है आदमी।
फूलों को सींचते पड़ा है आदमी॥
आदमी ने दुनिया का ढंग बदल दिया,
वह भी कैसा आदमी जो रंग बदल दिया ?
भवन को बनाता है वह भी आदमी।
भवन को जलाता है वह भी आदमी॥
आदमी पसीने से सागर भी दे गया,
वह भी कैसा आदमी जो लहर में गया ?
डूबा रंगरलियों में वह भी आदमी।
मांग रहा गलियों में वह भी आदमी॥
आदमी बनो करो कुछ आदमी के काम,
लिख न पायेगा नहीं तो आदमी में नाम ?
बेटा भी भूल गया वह भी आदमी।
जग न जिसे भूलेगा वह भी आदमी॥
आचार्य सरोज द्विवेदी
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