Saturday, 8 December 2012

आदमी


चांद पर जो चढ़ गया वह भी आदमी।
भूख से जो मर गया वह भी आदमी॥
    आदमी को नमन करे आदमी की भीड़,
    वह कैसा आदमी जो खोज रहा नीड़ ?
    गजरों के बीच में खड़ा है आदमी।
    फूलों को सींचते पड़ा है आदमी॥
आदमी ने दुनिया का ढंग बदल दिया,
वह भी कैसा आदमी जो रंग बदल दिया ?
भवन को बनाता है वह भी आदमी।
भवन को जलाता है वह भी आदमी॥
    आदमी पसीने से सागर भी दे गया,
    वह भी कैसा आदमी जो लहर में गया ?
    डूबा रंगरलियों में वह भी आदमी।
    मांग रहा गलियों में वह भी आदमी॥
आदमी बनो करो कुछ आदमी के काम,
लिख न पायेगा नहीं तो आदमी में नाम ?
बेटा भी भूल गया वह भी आदमी।
जग न जिसे भूलेगा वह भी आदमी॥

आचार्य सरोज द्विवेदी

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