आज के दिन अनोखी हुई थी बात कोई,
मैं ने खुद को ही खुद से दी थी सौगात कोई,
जिस तरह कोई मुस्कुराये आईने में देख अक्स अपना .
मैं मुस्कुरायी अपनी गोदी में देख कर उसको ,
कहाँ गयी चुभन सुई की , ज़ख्म नश्तर का,
मैं गयी भूल भयानक वो दर्द का मंज़र,
नर्म ,नाज़ुक, गुनगुने होठों की वो पहली छुअन,
यकीन तब कहीं आया कि अब मैं एक माँ हूँ,
मेरी जुही की कली, वो मेरी मासूम परी,
उसी की शक्ल में लगता है, हाँ मैं जिंदा हूँ…
sinsera
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