Sunday, 23 December 2012

चीरहरण करती है दिल्ली


यमुना में 
गर चुल्लू भर 
पानी हो दिल्ली डूब मरो ।
स्याह ... चाँदनी चौक हो गया 
नादिरशाहो तनिक डरो ।

नहीं राजधानी के 
लायक 
चीरहरण करती है दिल्ली,
भारत माँ 
की छवि दुनिया में 
शर्मसार करती है दिल्ली,
संविधान की 
क़समें 
खाने वालो, कुछ तो अब सुधरो ।

तालिबान में,
तुझमें क्या है 
फ़र्क सोचकर हमें बताओ,
जो भी 
गुनहगार हैं उनको 
फाँसी के तख़्ते तक लाओ,
दुनिया को 
क्या मुँह 
दिखलाओगे नामर्दो शर्म करो ।

क्राँति करो 
अब अत्याचारी 
महलों की दीवार ढहा दो,
कठपुतली 
परधान देश का 
उसको मौला राह दिखा दो,
भ्रष्टाचारी 
हाक़िम दिन भर 
गाल बजाते उन्हें धरो ।

गोरख पांडेय का 
अनुयायी 
चुप क्यों है मजनू का टीला,
आसमान की 
झुकी निगाहें 
हुआ शर्म से चेहरा पीला,
इस समाज 
का चेहरा बदलो 
नुक्कड़ नाटक बन्द करो ।

गद्दी का 
गुनाह है इतना 
उस पर बैठी बूढी अम्मा,
दु:शासन हो 
गया प्रशासन 
पुलिस-तन्त्र हो गया निकम्मा ,
कुर्सी 
बची रहेगी केवल 
इटली का गुणगान करो ।
जयकृष्ण राय तुषार


Friday, 21 December 2012

मकसद-ए-हयात


भटकता रहा मैं इस हयात में
हर पल एक खुशी की तलाश में
साधक बना विकट कामना थी मेरी
कोई दुखी न रहे अपने हयात में
चुभा कांटा निकाला था बच्‍चे का एक दिन
बेशुमार खुशियां आयी थी अपने हयात में
रोते एक शख्‍स को हंसा दिया था एक दिन
जश्‍न मनाया इतनी खुशियां मिली हयात में
गम खत्‍म बेजारों का गर कर सकूं
जीने का मकसद मिल जाए इस हयात में

राजीव आनंद
प्रोफेसर कॉलोनी, न्‍यू बरगंड़ा
गिरिडीह, झारखंड़ 815301



आगे पढ़ें: रचनाकार: राजीव आनंद की कविताएँ http://www.rachanakar.org/2012/12/blog-post_8987.html#ixzz2FiBnZHAb

बचा पाया हूँ


थोड़ी मस्ती थोड़ा सा ईमान बचा पाया हूँ।
ये क्या कम है मैं अपनी पहचान बचा पाया हूँ।
मैंने सिर्फ़ उसूलों के बारे में सोचा भर था,
कितनी मुश्किल से मैं अपनी जान बचा पाया हूँ।
कुछ उम्मीदें, कुछ सपने, कुछ महकी-महकी यादें,
जीने का मैं इतना ही सामान बचा पाया हूँ।
मुझमें शायद थोड़ा-सा आकाश कहीं पर होगा,
मैं जो घर के खिड़की रोशनदान बचा पाया हूँ।
इसकी कीमत क्या समझेंगे ये सब दुनिया वाले,
अपने भीतर मैं जो इक इंसान बचा पाया हूँ

Thursday, 13 December 2012

दरोगा जी


हाए हाए!
दरोगा जी
कुछ समझ नहीं पाए!

आश्चर्य में जकड़े गए,
जब सिपाही ने
उन्हें बताया—
रामस्वरूप ने चोरी की
फलस्वरूप पकड़े गए।

दरोगा जी बोले—
ये क्या रगड़ा है?
रामस्वरूप ने चोरी की
तो भला
बिना बात फलस्वरूप को
क्यों पकड़ा है?
सिपाही
बार-बार दोहराए—
रामस्वरूप ने चोरी की
फलस्वरूप पकड़े गए।
पकड़े गए जी पकड़े गए
पकड़े गए जी पकड़े गए!

दरोगा भी लगातार
उस पर अकड़े गए।

दृश्य देखकर
मैं अचंभित हो गया,
लापरवाही के
अपराध में
भाषा-ज्ञानी सिपाही
निलंबित हो गया।

Ashok Chakradhar

कफन ओढ़ के फुटपाथ पे सो जाता हूँ


अब में राशन की कतारों में नज़र आता हूँ
अपने खेतों से बिछड़ने की सज़ा पाता हूँ

इतनी महंगाई है के बाज़ार से कुछ लाता हूँ
अपने बच्चों में उसे बाँट के शरमाता हूँ

अपनी नींदों का लहू पोंछने की कोशिश में
जागते जागते थक जाता हूँ, सो जाता हूँ

कोई चादर समझ के खींच न ले फिर से 'ख़लील'
मैं कफन ओढ़ के फुटपाथ पे सो जाता हूँ


ख़लील धनतेजवी

Saturday, 8 December 2012

અભરખા ઉતારો.


આ તડકાને બીજે ગમે ત્યાં ઉતારો,
નહીં ’તો હરણને ન રણમાં ઉતારો.

હું મંદિરમાં આવ્યો અને દ્વાર બોલ્યું,
પગરખાં નહીં બસ અભરખા ઉતારો.

તમારી નજર મેં ઉતારી લીધી છે,
તમે મારા પરથી નજર ના ઉતારો.

આ પર્વતના માથે છે ઝરણાનાં બેડાં,
જરા સાચવી એને હેઠાં ઉતારો.

ફૂલો માંદગીનાં બિછાને પડ્યાં છે,
બગીચામાં થોડાક ભમરા ઉતારો.

ભીતરમાં જ જોવાની આદત પડી ગઈ,
હવે ભીંત પરથી અરીસા ઉતારો.

~ગૌરાંગ ઠાકર

आदमी


चांद पर जो चढ़ गया वह भी आदमी।
भूख से जो मर गया वह भी आदमी॥
    आदमी को नमन करे आदमी की भीड़,
    वह कैसा आदमी जो खोज रहा नीड़ ?
    गजरों के बीच में खड़ा है आदमी।
    फूलों को सींचते पड़ा है आदमी॥
आदमी ने दुनिया का ढंग बदल दिया,
वह भी कैसा आदमी जो रंग बदल दिया ?
भवन को बनाता है वह भी आदमी।
भवन को जलाता है वह भी आदमी॥
    आदमी पसीने से सागर भी दे गया,
    वह भी कैसा आदमी जो लहर में गया ?
    डूबा रंगरलियों में वह भी आदमी।
    मांग रहा गलियों में वह भी आदमी॥
आदमी बनो करो कुछ आदमी के काम,
लिख न पायेगा नहीं तो आदमी में नाम ?
बेटा भी भूल गया वह भी आदमी।
जग न जिसे भूलेगा वह भी आदमी॥

आचार्य सरोज द्विवेदी

मैंने देखा है



मैंने देखा है,
लोगों को प्यार करते
नादाने दिल को फुशलाकर
इश्क के इजहार करते
कभी हँसी को समेट मुट्ठी में
नादान कलियाँ खिल जाती
कहीं गम के अँधेरे साए में
डूबकर फुल झर जाते
दिल टूटना तो आम बात है
इंसान को मिट्टी बन देखा है
ढेर हो जाते
बेचकर अपना जमीर
अपना स्वाभिमान
जिस्म का सौदा करते लोग
मैंने देखा है, उन्हे भी प्यार करते
नादाने दिल को फुशलाकर
इश्क के इजहार करते
——-
घंटो घुम्म्कड़ी से घूमते प्रेमी
गहरे नींद में तकिये को चुमते प्रेमी
बनाकर ख्वाबों का पुलाव
छानकर रस की मलाई
अमृत का स्वाद चखते प्रेमी
देखा है, उन्हें भी
समय को नष्ट करते
बाप की कमाई और माँ की मज़बूरी
को धुंधलाकर ऐश करते
नादाने दिल को फुशलाकर
इश्क के इजहार करते
मैंने देखा है,
लोगों को प्यार करते
——-
सच -झूटलाकर मन बहलाकर
दिल की ही सुनते हैं ये
भरे महफ़िल में लाखों की भीड़ है
जनाब तन्हा से रहते हैं ये
कभी पन्नो पर चुभोकर कलम
एक ही दिशाओ में गोल-गोल
कभी रातों के गहरे अंधेर में
उल्लू की भातीं आँखे खोल
भगवान जाने क्या करते हैं ये
मैंने देखा हैं, इन्हें भी
नींद में…….!
प्यार का पाठ पढ़ते
भोग की रासलीला रचते
नादाने दिल को फुशलाकर
इश्क के इजहार करते
मैंने देखा है,
लोगों को प्यार करते
——-
सुरक्षात्मक प्रमेय अपनाकर
इश्क से तौबा करते लोग
खिंचकर रेखा सीमावाली
माप-तौल के चलते लोग
देखकर मुरब्बा हुस्न का
दिल ही दिल ये ललचाते है
चखने का तो दिल करता…पर!
बंधन से ये घबराते हैं
मैंने देखा हैं, इन्हें भी
खोकर गहरे खाई में
हाथों से बाण चलाते
केवल छन भर में उब जाते
नादाने दिल को फुशलाकर
इश्क के इजहार करते
मैंने देखा है,
लोगों को प्यार करते

Author Unknown

बेटियां


माँ -बाप का साथ हर पल निभाती है बेटियां,
माँ -बाप का साथ हर पल निभाती है बेटियां,
घर मै खुशाली हर पल लाती है बेटियां,
तमाम परेशानिया झेल कर खुश रहती है बेटियां,
घर मै उजाला न हो अगर न हो बेटियां,
रौनक घरो की हर पल बड़ती है बेटियां,
वो घर नहीं वीराना है,जिसमें न हो बेटियां,
नसीब भी बुलंद होते है उनके, होती है जिनकी बेटियां,
कह-कहों से हर पल गूंजता है आशियाना,
खामोशियों को दूर भगाती है बेटियां,
माँ-बाप की सारी खुशियाँ छीन जाती है ऐ “इन्सान ”
रुखसत जिस रोज़ घर से होती है बेटियां!!!

Monday, 3 December 2012

Gumrah (1963) - Chalo Ek Baar Phir Se

Gumrah (1963) - Chalo Ek Baar Phir Se


आज के दिन अनोखी हुई थी बात कोई,
मैं ने खुद को ही खुद से दी थी सौगात कोई,
जिस तरह कोई मुस्कुराये आईने में देख अक्स अपना .
मैं मुस्कुरायी अपनी गोदी में देख कर उसको ,
कहाँ गयी चुभन सुई की , ज़ख्म नश्तर का,
मैं गयी भूल भयानक वो दर्द का मंज़र,
नर्म ,नाज़ुक, गुनगुने होठों की वो पहली छुअन,
यकीन तब कहीं आया कि अब मैं एक माँ हूँ,
मेरी जुही की कली, वो मेरी मासूम परी,
उसी की शक्ल में लगता है, हाँ मैं जिंदा हूँ…

sinsera