Tuesday, 19 February 2013

दूर से


कॉच हूं अब डर सताता है मुझे,
जब कोई पत्‍थर उठाता दूर से॥
बेशक मुझे क्‍यूं शक ये होने लगा,
यूं कोई जब मुस्‍कराता दूर से॥
अब तो रिश्तों से भरोसा उठ गया,
दोस्‍त भी बाहें हिलाता दूर से॥
हर किसी के चोर दिल में है छुपा,
सच कोई न बोल पाता दूर से॥
अब किसे मिलने की भी फुर्सत यहॉ,
हर कोई रिस्‍ते निभाता दूर से॥
हम गलत हैं या जमाना है बुरा,
हर कोई बातें सुनाता दूर से॥
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उमेश मौर्य


आगे पढ़ें: रचनाकार: उमेश मौर्य की कविताएँ और ग़ज़लें http://www.rachanakar.org/2013/02/blog-post_8129.html#ixzz2LMhjoaF7

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